बिहार की 243 में से करीब 200 सीटों पर बीजेपी चुनाव लड़ रही है, फर्क ये है कि 110 पर अपने चुनाव चिन्ह पर और बाकी पर एलजेपी के चुनाव चिन्ह पर। बाकी 11 सीटें वीआईपी के लिए छोड़ दी है। एलजेपी जिन 122 पर है, उनमें से सिर्फ एक तिहाई पर उसके उम्मीदवार होंगे, बाकी पर बीजेपी के नेता फटाफट एलजेपी में शामिल होकर टिकट पाएंगे, ये अघोषित तथ्य है।
बिहार को राजनीति की प्रयोगशाला इसीलिए तो कहा जाता है और चाणक्य की धरती पर होने वाले चुनाव इसीलिए तो जो दिखता है वो होता नहीं। आपने पिछला विधानसभा चुनाव देखा था, भीड़ मोदी की जनसभाओं में जुटती थी और वोट बीजेपी को इतने ही आए कि 53 सीटों पर सिमट गई। इस बार नीतीश एनडीए का चेहरा तो हैं, लेकिन बीजेपी के लिए हाथी के अगले दो दांत हैं, चिराग पिछले दांतों की तरह बीजेपी के साथ इस तरह जमे हैं जो बाहर से नहीं दिखते, लेकिन सूंड उठाकर देखिए तो चकाचक दिखते हैं।
आप जिसे मास्टरस्ट्रोक कहते हैं, वो बीजेपी ने इस चुनाव में खेल दिया है। सवर्ण रोकर भी बीजेपी का साथ देंगे, राजद के साथ जा सकते नहीं और महादलित और कुर्मी नीतीश के साथ हैं और नीतीश बीजेपी के साथ हैं। दलित बिहार में या तो पासवान के साथ हैं और पासवान बीजेपी के साथ हैं या फिर माझी के साथ हैं जो एनडीए के साथ हैं। मतलब चाकू खरबूजा पर गिरे या खरबूज चाकू पर, कटना खरबूज को ही है।
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बीजेपी के मास्टर स्ट्रोक का सबसे मजबूत किरदार हैं ओवैसी…जिनके नाम से ही हिंदू वोटों का बीजेपी के पाले में ध्रुवीकरण हो जाता है और जब ओवैसी चुनाव प्रचार के दौरान हिंदुओं के खिलाफ आग उगलेंगे तो हिंदू वोट बीजेपी के साथ थोक के भाव जुड़ेंगे। ओवैसी के साथ हैं उपेंद्र कुशवाहा, जो नीतीश से 36 का आंकड़ा रखते हैं और जिनके एनडीए छोड़ने की वजह भी नीतीश ही थे। कुशवाहा और नीतीश कोइरी और कुर्मी जाति के हैं जो एक ही जाति की दो उपजाति हैं, तो नीतीश के बिना इस जाति का प्रतिनिधित्व कुशवाहा को बीजेपी सौंप सकती है। इधर नीतीश को सेट करना है लेकिन फायदा राजद को न मिले, इसका भी इंतजाम करना है तो राजद का वोट काटने में ओवैसी के साथ-साथ पप्पू यादव भी मैदान में हैं, जिन्हें पिछली बार बीजेपी ने हेलीकॉप्टर सेवा से प्रचार का भार सौंपा था, बाद में पोल खुलने से डैमेज कंट्रोल भी करना पड़ा था। पप्पू यादव ने अपनी पार्टी जाप के बैनर तले जो जनसेवा में पैसे बहाए, वो कहां से आए, ये बिहार की जनता को पता है और पप्पू को मिलने वाले वोट किसके खाते से कटेंगे, ये तो खैर बिहार से बाहर की जनता को भी पता है तो एक तीर से दो शिकार…इधर नीतीश ढेर उधर लालू के शेर।
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दिखने में ये आपको लखनऊ के भूल-भुलैया जैसा लगेगा, लेकिन सीधा यूं समझिए कि बिहार में बस दो दल मुख्य मुकाबले में हैं, बीजेपी और राजद। बाकी जितने भी दल हैं, वो इन दो दलों के लिए वोट जुटाने या वोट काटने का काम करने के लिए चुनाव मैदान में हैं। फंडिंग का स्रोत एक ही है और ये जो स्रोत है, वो बंद हो जाए तो कई के पास बैनर-पोस्टर छपवाने लायक भी पैसे नहीं हैं, जाहिर है ये उम्मीदवार भी उसी के मुताबिक उतारेंगे, जहां से लड़ने के लिए पैसे मिलेंगे।
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अब आपके दिमाग में एक सवाल आ रहा होगा कि नीतीश जैसा खिलाड़ी क्या चुप्पेचाप कमल छाप होते देखते रहेगा, तो भैया..वो भी पक्का बिहारी हैं..122 चाहिए..बीजेपी+जदयू को आ गया तब तो सोने पर सुहागा..और न आया तो जदयू+राजद+कांग्रेस ही सही…अपने नीतीश बाबू पार्टी और गठबंधन पर ज्यादा ध्यान नहीं देते, बस कुर्सी पर नज़र होती है, इधर वाला बढ़ा दे चाहे उधर वाला..। बस उनकी नज़र इस पर है कि कहीं बीजेपी+हम+एलजेपी को ये नंबर न आ जाए..। आखिरी अड़चन ये कि युवा लोग अभी भी पुष्पम प्रिया का झंडा उठाए घूम रहा है, खेल वहां भी है, जीतने का माहौल न भी बने लेकिन हराने का काम वहां भी चल सकता है।