विधानसभा चुनाव से जुड़ी इस वक्त की बड़ी खबर एलजेपी के अंदर से आ रही है. पूर्व विधायक और एलजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष सुनील पांडेय ने पार्टी को अलविदा कह दिया है. सुनील पांडेय अब तरारी विधानसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ेंगे.
सुनील पांडेय ने कहा है कि वह तरारी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे. लगातार क्षेत्र की जनता और समर्थक उनकी उम्मीदवारी का इंतजार कर रहे थे और अब उन्होंने पार्टी के बंधन से मुक्त होकर चुनाव लड़ने का फैसला किया है. सुनील पांडेय आज ही अपना नामांकन दाखिल करेंगे.
सुनील पांडेय सबसे पहली बार 2000 में पीरो विधानसभा से समता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े और वह जीत गए. उसके बाद वह जेडीयू के टिकट पर कई बार चुनाव जीते हैं. इस बीच वह जेडीयू से अलग हो गए और वह एलजेपी में शामिल हो गए.
2015 में उनकी पत्नी को एलजेपी ने तरारी से उम्मीदवार बनाया, लेकिन वह विधानसभा का चुनाव हाए गए. लेकिन 2020 में सुनील पांडेय ने एलजेपी का साथ छोड़ दिया है. उनके भाई हुलास पांडेय कई सालों से एलजेपी के साथ हैं. सुनील पांडेय पर कई हत्या, अपहरण समेत दो दर्जन मामले दर्ज हैं.साल था 2000. मार्च में बिहार में विधानसभा चुनाव होने थे.
समता पार्टी ने सुनील पांडेय को रोहतास के पीरो से टिकट दिया. उन्होंने आरजेडी के प्रत्याशी काशीनाथ को हराया और विधायक बन गए. उस चुनाव में तो किसी को भी बहुमत नहीं मिला. जब समता पार्टी का बीजेपी से गठबंधन था. तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने को कहा. बताया जाता है कि इस शपथ में सुनील पांडेय की भूमिका बहुत अहम थी. जब किसी को बहुमत नहीं मिला तो पांडेय ने राजन तिवारी, मुन्ना शुक्ला, रामा सिंह, अनंत सिंह, धूमल सिंह और मोकामा के सूरजभान जैसे निर्दलीय बाहुबलियों की फौज को नीतीश के खेमे में खड़ा कर दिया. इस तरह सुनील का कद और बढ़ गया.
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