कोरोना और लॉकडाउन के कारण बंद हुए कारखानों और उद्योग-धंधे ने मजदूरों को भूखमरी के मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया था।बिहार और उत्तर प्रदेश के प्रवासी मजदूर जो बड़े बड़े महानगरों में दिहाड़ी कर अपना जीवन यापन करते थे, उनके लिए वहां रुकना मुश्किल हो गया था, लोग पैदल ही घरों की तरफ चल दिये थे। मामले में राजनीति भी खूब हुई।
बिहार में चुनाव था इस कारण से सूबे में मजदूरों की समस्या तूल भी काफी पकड़ी थी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार प्रवासियों के निशाने पर थे। अब जब चुनाव की तारीखों का एलान हो गया है, मतदान की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। ऐसे में यह मामला फिर से चर्चा में आ गया है।
अनलॉक की शुरुआत होते ही अपने गांव लौटे प्रवासी मजदूर रोजगार की तलाश में वापस महानगर चले गए। बिहार सरकार ने स्थानीय स्तर पर रोजगार देने का वादा भी किया था लेकिन जब 15 साल में रोजगार सृजन नहीं हुआ तो चंद दिनों में संभव ही नहीं था। नतीजतन प्रवासी वापस लौट गए।
वापस लौटे प्रवासियों से जब बिहार जाकर वोट गिराने की बात मीडिया के माध्यम से पूछी गई तो मीडिया रिपोर्टस के अनुसार अधिकांश का कहना था कि सरकार सिर्फ अमीरों के लिए काम करती है। गरीब मजदूरों का ख्याल न तो लॉकडाउन के समय रखा गया और न आज सरकार का इस ओर ध्यान है।
वोट के सवाल पर कहना था कि पहली प्राथमिकता पेट की आग है। मुश्किल से थोड़ी बहुत दिहाड़ी मिलनी शुरू हुई है, ऐसे में यदि अब वोट डालने जाएंगे तो फिर भूख बड़ी समस्या सामने आ जायेगी। सरकार किसकी भी बनी क्या फर्क पड़ता है। गरीबों का ही तो शोषण ही होगा।
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