बिहार चुनाव के बीच प्याज के तेवर तीखे होना ठीक नहीं है।प्याज ने कई सरकारों की बलि ली है।सत्ताधारियों को सत्ता से बेदखल किया है।इसने बड़े-बड़े राजनीतिज्ञों को रुलाया है और सरकारें भी गिराई हैं।कुछ महीनों तक सब्जी बाजार में उपेक्षित-सा रहने वाला प्याज अचानक उठता है और सरकारों की नींव हिला देता है।भले ही इसके पीछे मौसम या फसल-चक्र की मेहरबानी रही हो।दिल्ली की सड़कों से लेकर न्यूयार्क टाइम्स की सुर्खियां बटोरने वाला प्याज आज अपने पुराने फार्म में लौट रहा है।एक हफ्ते में प्याज की कीमतों में 20 फीसद का उछाल आया है।नासिक की थोक मंडी में 19 अक्टूबर को प्याज का भाव 62 रुपये किलो था।अभी लोग पिछले साल की तरह ‘प्याज के आंसू’ तो नहीं रो रहे पर बिहार चुनाव में ताल ठोक रहे नेताओं को जरूर यह प्याज रुला सकता है। क्योंकि, प्याज और राजनीति का यह रिश्ता पुराना है।
बिहार चुनाव के बीच प्याज की कीमतों में उछाल
अब फिर प्याज की कीमतों में उछाल का सीजन है। फर्क सिर्फ इतना है कि इस समय बिहार का विधानसभा चुनाव चल रहा है।देश में अब हर ओर प्याज के बढ़े दामों की चर्चा होनी शुरू हो गई है। पिछले साल के आंसू अभी भी लोगों ने भूले नहीं हैं।ऐसे में फिर एक बार प्याज की कीमत बढ़ना क्या कुछ करेगा ये तोह अभी नहीं बताया जा सकता।
बता दे कि महाराष्ट्र प्याज का सबसे बड़ा उत्पादनकर्ता है और इसकी एशिया में सबसे बड़ी मंडी लासलगांव यहीं है।19 अक्टूबर को इस मंडी में थोक प्याज का भाव 62 रुपये किलो था। महाराष्ट्र के नासिक और मालेगोयन में पिछले सप्ताह की बारिश और तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में फसलों को नुकसान पहुंचा है या कटाई में देरी हुई है।
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