Saturday, April 20
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मजबूरी नहीं मजबूती का नाम है ‘महात्मा गांधी’

देश को आजादी दिलाने वाले महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की जयंती हर साल 2 अक्टूबर (2 October) को मनाई जाती है. गांधी जी सत्य और अहिंसा के पूजारी थे. महात्मा गांधी को विश्व पटल पर अहिंसा के प्रतीक के तौर पर जाना जाता है.देश में राष्ट्रपिता का दर्जा प्राप्त कर चुके गांधी जी की जिंदगी एक जीवनी नहीं बल्कि एक किताब है जिसके हर पन्ने पर ज्ञान का अपार भंडार भरा हुआ है.

गांधी: एक नाम नहीं बल्कि आदर्श

अगर व्यापक स्तर पर देखा जाए तो महात्मा गांधी एक शख्स का नाम नहीं बल्कि एक संस्कृति एक विरासत है. महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के जीवन से मनुष्य को सीखने के लिए बहुत कुछ मिलता है, लेकिन यह भी एक सत्य है कि उनकी विचारधारा को कुछ घंटों में समझना मुश्किल है. इसके लिए पर्याप्त अध्ययन की जरूरत है.  राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का व्यक्तित्व और कृतित्व आदर्शवादी रहा है. उनका आचरण प्रयोजनवादी विचारधारा से ओतप्रोत था. दुनिया के महान लोगों की प्रेरणा के रूप में गांधी जी आज भी जिंदा हैं.

जो चीज गांधी जी को एक आदर्श शख्सियत और पाठशाला बनाती है वह हैं उनके प्रयोग और सिद्धांत. उनके हर सिद्धांत के साथ कई प्रयोग और कई अनुभव जुड़े हैं. चाहे वह अहिंसा का सिद्धांत हो या उनके ब्रह्मचर्य का प्रयोग, सभी में आप गांधी जी प्रयोगात्मक सोच को पाएंगे. आइए आज हम गांधी जी के विचारों और सिद्धांतों पर सिलसिलेवार तरीके से नजर डालें.

Mahatma Gandhi – Life, Work and Philosophy: मजबूरी नहीं मजबूती हैं गांधी

अकसर कई लोग विपरीत परिस्थितियों में एक जुमले का प्रयोग करते है जो इस तरह से है कि “मजबूरी का नाम महात्मा गांधी”. गांधी जी और मजबूरी को एक साथ रखने वाले अज्ञानी लोग यह भूल जाते हैं कि महात्मा गांधी अगर मजबूर होते तो आज देश शायद आजाद न होता. अगर गांधी जी मजबूरी का प्रतीक होते तो वह नमक कानून को तोड़ने के लिए सरकार के आदेश को तोड़ने का दुस्साहस ना करते. अन्याय और भेदभाव के विरुद्ध तन कर खड़ा होने वाला यह निर्णायक क्षण ही गांधी को गांधी बनाता है और किसी भी अन्याय/अत्याचार का प्रतिकार करने वाले अदम्य साहस और आत्मबल का पता देता है.

Principles of Nonviolence: अहिंसा के समर्थक पर कायरता के समर्थक नहीं

कई लोग गांधी जी की अहिंसा की नीति को उनकी कमजोरी मानते हैं. ऐसे लोगों की सोच है कि गांधी जी की वजह से ही अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लोगों ने बल का प्रयोग नहीं किया. लेकिन गांधी की नीति इस पर बहुत ही साफ थी. गांधी का कहना था कि अगर उन्हें हिंसा और कायरतापूर्ण लड़ाई में से किसी एक को चुनना हो तो वह कायरता की बजाय हिंसा को चुनते. वह किसी कायर को अहिंसा का पाठ नहीं पढ़ाना चाहते थे. उनके लिए यह कुछ ऐसा ही था जैसे किसी अंधे को लुभावने दृश्यों की ओर प्रलोभित करना. गांधीजी की नजरों से देखें तो अहिंसा शौर्य का शिखर है. खुद गांधी जी ने भी अहिंसा का महत्व तभी समझा जब उन्होंने कायरता को छोड़ना शुरू किया.

अंग्रेजी के समर्थक लेकिन हिन्दी विरोधी नहीं

कई लोग गांधी जी को पाश्चात्य संस्कृति का समर्थक भी मानते थे और उनकी जीवनशैली पर नजर डालें तो पाएंगे कि कुछ हद तक उन्होंने पाश्चात्य संस्कृति को भी अपनाया था. उनके लिए पाश्चात्य संस्कृति का स्वागत करने का आशय कुछ ऐसा ही था जैसे घर की खिड़की द्वारा बाहर की स्वच्छ हवा को घर में आने देना. लेकिन इसके साथ ही वह कहते थे कि विदेशी भाषाओं का ज्ञान तो सही है लेकिन उसे ऐसे ग्रहण भी नहीं करना चाहिए कि उसकी आंधी में हम औंधे मुंह गिर पड़ें. उनका कहना था कि भारतीय अंग्रेजी ही क्यों, अन्य भाषाएं भी पढ़ें, परंतु जापान की तरह उनका उपयोग स्वदेश हित में किया जाए.

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Mahatma Gandhi’s Experiment: गांधी जी के प्रयोग

जो चीज गांधी जी को उपरोक्त सिद्धांतों पर खरा उतरने और उन्हें सफल बनाने में सहायक सिद्ध हुई वह थी उनकी प्रयोग की आदत फिर चाहे वह द. अफ्रीका में सत्याग्रह आंदोलन कर उसे भारत में भी इस्तेमाल करना हो या अपने निजी जीवन में ब्रह्मचर्य का प्रयोग कर अपने शिष्यों को भी उस पर चलने की सीख देना. कौन भूल सकता है कि गांधी जी ने जीवन में मूलभूत जरूरतों को पूरा करने और बेहद कम आजीविका पर भी जीवित रहने के लिए खुद के ही भोजन पर प्रयोग किया था. यह देखने के लिए कि कितने कम खर्च में वे जीवित और स्वस्थ रह सकते हैं, उन्होंने अपनी खुराक को लेकर भी प्रयोग किया. सैद्धांतिक रूप से वे फल, बकरी के दूध और जैतून के तेल पर जीवन निर्वाह करने लगे.

गांधी जी जब देश के बारे में बात करते थे तो उनकी दृष्टि से समाज के अंतिम छोर पर खड़ा व्यक्ति ओझल नहीं हो पाता था. उनकी नजर में वह मनुष्य उतना ही महत्वपूर्ण था जितना कि राष्ट्र. लेकिन आज सरकार की निगाहों में समाज बंटा हुआ है. एक तरफ वह समाज है जिसे सरकार सिर्फ वोट बैंक की भीड़ मानती है और दूसरी तरफ वह वर्ग है जिसके द्वारा उसे पैसा मिलता है या लाभ होता है. आज नैतिकता की बजाए अवसरवाद पर आधारित भ्रष्ट राजनीति के दौर के राजनेता महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के आदर्शों पर चलने का साहस नहीं कर सकते.

लेकिन इस महापुरुष की यादें आज लोगों को सिर्फ 2 अक्टूबर और 30 जनवरी को ही आती हैं. आज गांधी जी समाज में सिर्फ “अतिथि” बनकर रह गए हैं. जयंती और पुण्यतिथि पर गांधी जी की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर समाज उस गांधी से बचना चाहता है जिसे जीवन में अमल में लाकर शायद जीवन एक आदर्श जीवन बन जाए. व्यक्ति और राष्ट्र किन मूल्यों को अपनाकर श्रेष्ठता के शिखर पर पहुंच सकते हैं महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ने इसकी ओर बार-बार याद दिलाया है.

वह जो सोचता है वही बन जाता है.

-महात्मा गांधी

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