बिहार की पहली महिला उपमुख्यमंत्री रेणु देवी का जीवन संघर्ष की आग में तप कर निखरा है। जिन परिस्थितियों में उन्होंने राजनीति की शुरुआत की वो बहुत कठिन पल थे। पति के असामयिक निधन ने उनकी राहों में कांटे बिछा दिये थे। लेकिन रेणु देवी ने हालात से लड़ कर अपने लिए मुकाम बनाया। वे राजनीति में मातृशक्ति का प्रतीक हैं। भाजपा ने उनकी इसी ताकत को विस्तार का आधार बनाया है।
रेणु देवी के पिता कृष्णा प्रसाद सिंचाई विभाग में जूनियर इंजीनियर थे। मां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अनुयायी थीं। खुशहाल परिवार था। रेणु देवी ने इंटर तक पढ़ाई की। 1973 में उनकी शादी कोलकाता में रहने वाले दुर्गा प्रसाद से हुई। दुर्गा प्रसाद कोलकाता में इंश्योरेंस इंस्पेक्टर थे। शादी के छह साल बाद ही दुर्गा प्रसाद का अचानक देहांत हो गया। रेणु देवी पर दुखों क पहाड़ टूट पड़ा। जब पति की मौत हुई तो उनकी पुत्री की उम्र ढाई साल और पुत्र की उम्र केवल छह महीना थी।
अब उनके सिर पर उन दो बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेवारी आ गयी। उन्होंने खुद ही अपने बच्चों की परवरिश करने की ठानी। नौकरी की। करीब आठ-नौ साल की नौकरी के बाद उनकी तनख्वाह 60 हजार रुपये तक हो गयी थी। मां के प्रभाव से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में आस्था रखती थीं। 1988 में राममंदिर आंदोलन की लौ जल चुकी थी। इसी दौर में एक बार लालकृष्ण आडवाणी और मृदुला सिन्हा (गोवा की पूर्व राज्यपाल जिनका हाल ही में निधन हुआ है) बेतिया आये तो उनकी मुलाकात रेणु देवी के माता-पिता से हुई। आडवाणी और मृदुला सिन्हा ने रेणु देवी को राम मंदिर आंदोलन के लिए मांग लिया। उस समय उनकी उम्र 30 साल थी।
बच्चों की परवरिश की, राजनीति में पांव भी जमाया
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इसके बाद रेणु देवी नौकरी छोड़ कर राममंदिर आंदोलन में शामिल हो गयीं। वे मां के साथ बेतिया में रहने लगीं और बेतिया को ही अपनी कर्मभूमि बना लिया। फिर वे विश्व हिन्दू परिषद की अनुषंगी इकाई दुर्गा वाहिनी से जुड़ी और कम समय में ही एक तेज- तर्रार कार्यकर्ता की छवि बना ली। अतिपिछड़े नोनिया समुदाय से ताल्लुक रखने वाली रेणु देवी ने गरीब और पिछड़ी जाति की महिलाओं में विहिप के विचारों का प्रचार-प्रसार किया।
उनकी मेहनत रंग लायी। भाजपा में उनके काम की चर्चा होने लगी। रेणु देवी को भाजपा ने पश्चिम चम्पारण जिला महिला मोर्चा का अध्यक्ष बना दिया। 1993 में बिहार भाजपा महिला मोर्चा का अध्यक्ष बनने के बाद रेणु देवी एक मजबूत नेत्री के रूप में स्थापित हो गयीं। पहला विधानसभा चुनाव 1995 में नौतन से लड़ा लेकिन हार गयीं। तब उनका मुकाबला दबंग सत्तन यादव से हुआ था। 2000 में भाजपा ने उनको बेतिया सीट से चुनाव मैदान में उतारा। वे विधायक बनीं। 2005 में फिर बेतिया से जीतीं और नीतीश सरकार में कला और संस्कृति मंत्री बनीं। रेणु देवी बेतिया से पांच बार विधायक चुनी गयीं। 2020 में जब भाजपा 74 विधायकों वाली पार्टी बन गयी तो उसने बिहार में मातृशक्ति के विस्तार के लिए रेणु देवी पर दांव खेला।
सूझ-बूझ वाली नेत्री
डिप्टी सीएम बनने से पहले रेणु देवी को कम एक्सपोजर मिला था। लेकिन पार्टी के अंदर उन्हें हमेशा गहरी सूझबूझ वाला नेता माना जाता रहा है। उन्हें मालूम है कि डिप्टी सीएम का पद क्यों दिया गया है। वैसे डिप्टी सीएम का पद कोई संवैधानिक पद नहीं है। उसके अधिकार किसी सामान्य मंत्री की तरह ही होते हैं। राज्यपाल डिप्टी सीएम को एक मंत्री के रूप में ही शपथ दिलाते हैं। डिप्टी सीएम पद का सिर्फ मनोवैज्ञानिक महत्व है। इस पद के जरिये कोई पार्टी, किसी नेता की अहमियत को प्रदर्शित करती है। ऐसा अक्सर गठबंधन की राजनीति में होता है या फिर तब होता है जब किसी दल में सत्ता के लिए दो मजबूत नेता आपस में टकरा जाते हैं। रेणु देवी का कहना है कि बिहार में डिप्टी सीएम के दो पद रहने से शासन की क्षमता और उसके प्रभाव में बढोतरी होगी। वे प्रशासन को माइक्रो लेवल पर ऑब्जर्ब करेंगे जिसके और भी बेहतर नतीजे निकलेंगे।
गुड गवर्नेंस के लिए दो डिप्टी सीएम
भाजपा ने गुड गवर्नेंस के लिए ही बिहार में भी दो डिप्टी सीएम के कन्सेप्ट को लागू किया है। उत्तर प्रदेश में यह मॉडल सफल रहा है। भाजपा इस बार शासन में प्रभावकारी भूमिका निभाने के लिए तैयार है। रेणु देवी का कहना है कि भले उन्हें कोई पद मिल जाए लेकिन वे खुद को एक सामान्य कार्यकर्ता ही मानती हैं। उन्होंने साफ किया कि दो डिप्टी सीएम की व्यवस्था को किसी और संदर्भ में नहीं देखा जाना चाहिए। वे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बड़ा भाई मानती हैं और उनके नेतृत्व में काम करना सौभाग्य समझती हैं। रेणु देवी, सुशील कुमार मोदी के लिए भी बहुत शुक्रगुजार हैं। उन्होंने कहा, भाई साहब (सुशील मोदी) ने मुझे राजनीति में उंगली पकड़ कर चलना सिखाया है। अब रेणु देवी का कहना है, मुझमें वो आत्मविश्वास है कि मैं किसी भी चुनौती का सामना कर सकती हूं।
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