Saturday, July 27
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इस बार नहीं लगेगा पटना पुस्तक मेला, 35 वर्षों से हो रहा था आयोजन

बिहार का लोकप्रिय सांस्कृतिक महोत्सव पटना पुस्तक मेला इस बार कोरोना की वजह से नहीं हो पाएगा। 35 वर्षों से लगने वाले पटना पुस्तक मेले का पूरे बिहार के लोग साल भर इंतजार करते हैं। दिल से जुड़े बिहार को इस बार मायूस होना पड़ेगा।

1985 में शुरू हुआ था पुस्तक मेला

पूरे देश में यह माना जाता है कि बिहार के लोग खूब पढ़ते हैं। साहित्य की किताबें सबसे अधिक बिहार में पढ़ी जाती है, इसीलिए 1985 से छोटे शक्ल में शुरू हुआ पटना पुस्तक मेला की ख्याति पूरे देश में हो गई। यहाँ देश-विदेश के सैकड़ों बड़े-छोटे प्रकाशक आते रहे हैं। पटना पुस्तक मेला ने ‘खूब पढ़ता है बिहार’ की परम्परा को आगे बढ़ाकर ‘खूब लिखता भी है बिहार’ की संस्कृति का विस्तार करने में शानदार भूमिका अदा की।

साल भर लोग करते हैं इंतजार

सीआरडी अध्यक्ष और उपन्यासकार रत्नेश्वर ने बताया कि 35 वर्षों की परंपरा कोरोना की वजह से टूट रही है। पटना पुस्तक मेला बिहार-झारखंड के लिए एक बड़े सांस्कृतिक उत्सव की तरह हो गया है। इसमें आने वाले ख्यातिप्राप्त लेखकों का आना इसे बड़ा बना देता है। लोकनृत्य, संगीत, नुक्कड़ नाटक, जन-संवाद, काव्य पाठ, कथा पाठ, चित्र कला प्रदर्शनी, फिल्म महोत्सव, पुरस्कार सम्मान आदि गतिविधियां इसे एक वैसा आयोजन बनाता है कि लोग साल भर इसका इंतजार करते हैं। प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करने वालों के लिए भी यह मेला हर साल खास होता था। पिछले साल इसी समय यह मेला गांधी मैदान में लगा था। पिछले साल देश भर से ढ़ाई सौ प्रकाशक मेले में आए थे। मेला में पहुंचे लोगों की संख्या दो लाख के आसपास थी। हर साल 12 दिनों तक यह मेला चलता है।


पुस्तक प्रेमियों को देख नामवर सिंह भी हुए थे खुश

पटना पुस्तक मेला भारत का तीसरा और दुनिया के दस प्रमुख पुस्तक मेलों में शामिल है। पटना पुस्तक मेला अपने सांस्कृतिक आंदोलन के लिए जाना जाता है। इसी सन्दर्भ में अपने समय के विख्यात पत्रकार प्रभाष जोशी ने एक बार पटना पुस्तक मेला में भाषण देते हुए कहा था कि देश की हो या न हो पर हिन्दी प्रदेशों की यदि कोई संस्कारधानी हो सकती है तो वह बिहार का पटना ही है। वहीं प्रतिष्ठित लेखक-आलोचक डॉक्टर नामवर सिंह ने अपने सामने चार हजार से भी अधिक श्रोताओं को देखकर कहा था कि यदि यहाँ आने से पहले मेरी मौत हो गई होती, तो मेरी आँखें खुली रह गई होतीं क्योंकि यह दृश्य देखना बाकी रह गया होता!

पटना बंद में भी पुस्तक मेला रहा था खुला

पटना पुस्तक मेला मेला में लाखों पुस्तक प्रेमी शिरकत करते हैं। 2003 से 2010 के बीच हरेक वर्ष लगभग पांच लाख से भी अधिक पुस्तक प्रेमी इसमें शामिल होते रहे। इस सन्दर्भ में एक और घटना का जिक्र करना जरूरी लगता है। एक बार एनडीए ने पटना बंद की घोषणा की थी। उनकी ओर से दवा दुकान और पटना पुस्तक मेला को बंद से मुक्त रखा गया था. इससे यह साबित होता है कि पटना पुस्तक मेला का बिहार में क्या महत्त्व है। इसने बिहार की छवि को बदलने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कोरोना के कारण इस बार बिहार के युवा भी बहुत मायूस हैं. उनका लोकप्रिय आयोजन पटना पुस्तक मेला का नहीं होना उन्हें साल रहा है|

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