जयपुर शहर के सीतापुरा स्थित महात्मा गांधी अस्पताल के हार्ट सर्जन को एओर्टिक डिसेक्शन का जटिल ऑपरेशन कर एक युवक की जान बचाने में सफलता अर्जित की है। युवक बहुत ही नाजुक स्थिति में महात्मा गांधी अस्पताल में आया था। प्रख्यात हार्ट सर्जन डॉ एम ए चिश्ती ने तुरंत ही बीमारी की पहचान कर ली थी। रोगी को मोरफैंस सिंड्रोम नामक बीमारी की वजह से हृदय की महाधमनी की परतें विभाजित हो गई थी तथा इनमें लीकेज की वजह से एन्युरिज्म यानी फुलाव आकर खून भर गया था। ऐसे दुर्लभ व जटिल मामले 1 लाख व्यक्तियों में से 1 से 3 रोगी में ही सामने आते है। रोगी का एओर्टिक वाल्व खराब हो गया था और हार्ट, लीवर, किडनी फैलियर की स्थिति थी, जो रोगी के लिए जानलेवा स्थिति होती है, लेकिन अनुभवी चिकित्सकों ने सफल ऑपरेशन के जरिए रोगी को नया जीवन प्रदान किया।
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उल्लेखनीय है कि डॉ. चिश्ती को राज्य में पहला हृदय प्रत्यारोपण करने का श्रेय भी हासिल है। महात्मा गांधी अस्पताल के हार्ट सर्जरी विभाग के निदेशक डॉ. चिश्ती के अनुसार रोगी दिल की बीमारी से बीते लगभग 3 साल से पीड़ित था। एओर्टिक वाल्व सामान्यतया 2.5 डाई सेंटीमीटर तक फूलता है फिर नॉर्मल हो जाता है। किंतु इस रोगी के फुलाव 4 गुना बढ़कर 10 डाई सेमी तक हो गया था।
इस प्रकार हुई यह ब्लडलेस सर्जरी
डॉ. चिश्ती ने बताया कि पहले रोगी को मेडिकल मैनेजमेंट के जरिए लीवर व किडनी फेलियर की स्थिति से बाहर निकाला गया। एओर्टा डिसेक्शन के इस जटिल ऑपरेशन में रोगी का खून हार्ट एवं लंग्स मशीन में पहुंचा दिया गया तथा हार्ट को 20 मिनट तक बंद कर दिया गया। ब्रेन को दोनों के एओर्टिक आर्टिज के जरिए ब्लड सप्लाई दी गई। हार्ट को सुरक्षित रखने के लिए कार्डियक प्लीजिया दिया गया। एक विशेष प्रकार का ‘डेक्रोम ग्राफ्ट’ लगाकर रक्त संचार को सुचारू किया गया। ऑपरेशन 8 घंटे तक चला। इस सर्जरी की विशेष बात यह थी कि सर्जरी के दौरान जरा भी खून का रिसाव नहीं हुआ। इसे ब्लडलेस सर्जरी कहा जाता है। रोगी के ठीक हो जाने पर उसे घर भेज दिया गया। खास बात यह भी है कि दिल्ली व अन्य मेट्रो सिटीज के मुकाबले उपचार खर्च इस सर्जरी में एक चौथाई से भी कम रहा।
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