Tuesday, July 23
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जानें उस सूर्य मंदिर के बारे में जिसका निर्माण स्वयं विश्वकर्मा ने करवाया, देखें बिहार के मंदिरों की तस्वीरें

औरंगाबाद. बिहार के औरंगाबाद जिले में देव स्थित प्राचीन सूर्य मंदिर (Ancient Sun Temple of Dev in Aurangabad) कई मामलों में अनोखा है. ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने एक रात में की थी. साथ ही, यह देश का अकेला ऐसा सूर्य मंदिर है, जिसका दरवाजा पश्चिम की ओर है.

इस मंदिर में सूर्य देवता की मूर्ति सात रथों पर सवार है. इसमें उनके तीनों रूपों उदयाचल-प्रात: सूर्य, मध्याचल- मध्य सूर्य और अस्ताचल -अस्त सूर्य के रूप में विद्यमान है. पूरे देश में यही एकमात्र सूर्य मंदिर है जो पूर्वाभिमुख न होकर पश्चिमाभिमुख है.

हर साल छठ के मौके पर यहां लाखों श्रद्धालु छठ करने झारखंड, मध्य प्रदेश, उतरप्रदेश समेत कई राज्यों से आते हैं. ऐसी मान्यता है कि जो भक्त मन से इस मंदिर में भगवान सूर्य की पूजा करते हैं, उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण डेढ़ लाख वर्ष पूर्व किया गया था. त्रेता युगीन पश्चिमाभिमुख सूर्य मंदिर अपनी विशिष्ट कलात्मक भव्यता के साथ-साथ अपने इतिहास के लिए भी विख्यात है. यह मंदिर औरंगाबाद से 18 किलोमीटर दूर देव में स्थित है

कहा जाता है कि एक राजा ऐल एक बार देव इलाके के जंगल में शिकार खेलने गए थे. शिकार खेलने के समय उन्हें प्यास लगी, तो उन्होंने अपने आदेशपाल को लोटा भर पानी लाने को कहा. आदेशपाल पानी की तलाश करते हुए एक पानी भरे गड्ढे के पास पहुंचा. वहां से उसने एक लोटा पानी लेकर राजा को दिया.

 राजा के हाथ में जहां-जहां पानी का स्पर्श हुआ, वहां का कुष्ठ ठीक हो गया. बाद में राजा ने उस गड्ढे में स्नान किया और उनका कुष्ठ रोग ठीक हो गया. उसके बाद उसी रात जब राजा रात में सोए हुए, तो सपना आया कि जिस गड्ढे में उन्होंने स्नान किया था, उस गड्ढे में तीन मूर्तियां हैं. राजा ने फिर उन मूर्तियों को एक मंदिर बनाकर स्थापित किया.

राजा के हाथ में जहां-जहां पानी का स्पर्श हुआ, वहां का कुष्ठ ठीक हो गया. बाद में राजा ने उस गड्ढे में स्नान किया और उनका कुष्ठ रोग ठीक हो गया. उसके बाद उसी रात जब राजा रात में सोए हुए, तो सपना आया कि जिस गड्ढे में उन्होंने स्नान किया था, उस गड्ढे में तीन मूर्तियां हैं. राजा ने फिर उन मूर्तियों को एक मंदिर बनाकर स्थापित किया.यहां पर स्थित तालाब का विशेष महत्व है. इस तालाब को सूर्यकुंड भी कहते हैं. इसी कुंड में स्नान करने के बाद सूर्यदेव की आराधना की जाती है. इस मंदिर में परंपरा के अनुसार प्रत्येक दिन सुबह चार बजे घंटी बजाकर भगवान को जगाया जाता है. उसके बाद भगवान की प्रतिमा को स्नान कराया जाता है, फिर ललाट पर चंदन लगाकर नए वस्त्र पहनाएं जाते है. यहां पर आदिकाल से भगवान को आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ सुनाने की प्रथा भी चली आ रही है.

छपरा में गरखा प्रखंड का नराव सूर्य मंदिर में छठ के दौरान लोगों की आस्था का केंद्र बन जाता है. बिहार के कई जिलों के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के लोग भी यहां छठ पूजा के लिए पहुंचते हैं जिसे लेकर यहां पूजा समिति के लोग विशेष तैयारी करते हैं. मंदिर में स्थापित काले रंग की सूर्य की प्रतिमा अपने आप में इस मंदिर को अलग पहचान देती है.

 लखीसराय के सूर्यगगड़ा प्रखंड के पोखरामा गांव स्थित सूर्यमंदिर अपने आप में एक ऐतिहासिक सूर्य मंदिर है, जहां भगवान सूर्यदेव, गणेश, विष्णु, दुर्गा व भगवान शंकर समेत पंचदेव एक साथ विराजमान हैं. पोखरामा गांव के बीच 1990 के दशक में गांव के ही रामकिशोर सिंह के द्वारा सूर्यमंदिर की स्थापना की गई, जो वर्तमान में मंदिर की दिव्यता व भव्यता लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है.

लखीसराय के सूर्यगगड़ा प्रखंड के पोखरामा गांव स्थित सूर्यमंदिर अपने आप में एक ऐतिहासिक सूर्य मंदिर है, जहां भगवान सूर्यदेव, गणेश, विष्णु, दुर्गा व भगवान शंकर समेत पंचदेव एक साथ विराजमान हैं. पोखरामा गांव के बीच 1990 के दशक में गांव के ही रामकिशोर सिंह के द्वारा सूर्यमंदिर की स्थापना की गई, जो वर्तमान में मंदिर की दिव्यता व भव्यता लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है.

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