Friday, March 29
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92 चुनाव हारकर अपने को बाजीगर मानने वाले को Hasnu Ram Ambedkari कहते हैं…

आदमी को उम्मीद और हौसला दोनों ही नहीं छोड़ना चाहिए. यूं भी कहा यही गया है जिसके पास उम्मीद है वो लाखों बार हारने के बावजूद भी नहीं हारता. एक तरफ ये बातें हैं दूसरी तरफ़ 74 साल के हसनु राम अंबेडकरी हैं. आदमी का जिगरा कितना बड़ा है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आगरा निवासी अपना ये भाई अब तक की अपनी ज़िंदगी में 92 इलेक्शन लड़ा है और हारा है. मगर 92 बार हारने के बावजूद भाई की हिम्मत ये कि वो 93 वीं बार चुनाव लड़ने जा रहे हैं. अबकी उनका इरादा पंचायत चुनाव लड़ने का है. जिस तरह से अंबेडकरी में चुनाव लड़ने के कीड़े हैं हमें पूरी उम्मीद है कि किसी प्राइमरी स्कूल में अगर क्लास में मॉनिटर का चुनाव हो तो भी हसनु राम चुनाव लड़ने पहुंच जाएंगे. आगरा स्थित राज नगर नगला दूल्हे खां निवासी हसनु राम अपने को बाबा साहब भीमराव अंबेडकर का एकदम सच्चा वाला सपोर्टर बता रहे हैं और अंबेडकर का प्यार ही वो कारण है जिसके तहत उन्होंने अपना नाम अंबेडकरी रख लिया.

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हसनु राम के बारे में दिलचस्प बात ये है कि वो 1984 से चुनाव लड़ रहे हैं और इसमें भी मजेदार ये है कि हसनु राम ने सभी चुनाव में हार हासिल की है. हसनु राम पूर्व में प्रधानी से लेकर विधायकी और सांसदी तक हर चुनाव में अपना भाग्य आजमा चुके हैं. पूर्व में जब राष्ट्रपति चुनाव हुए थे उन्होंने राष्ट्रपति के लिए नामांकन भरा था जो किसी कारणवश रिजेक्ट हो गया.

2019 लोकसभा चुनाव में हसनु राम अंबेडकरी ने फतेहपुर सीकरी से चुनाव लड़ा और 4200 वोट हासिल किए. आगे कहने बताने को हमारे पास बहुत कुछ है मगर उन 4200 लोगों के जज्बे को तहे दिल से सलाम जिन्होंने अंबेडकरी के रूप में अपना सांसद देखा. अभी हाल फिलहाल में उत्तर प्रदेश में पंचायत के चुनाव होने हैं तो हसनु राम को अब पंचायत चुनावों में अपने भाग्य का फैसला करवाना है.

अपनी इस नई स्कीम के बारे में बात करते हुए हसनु राम ने बताया कि इस बार मैं वार्ड 31 से चुनाव लड़ रहा हूं यदि मैं 2022 तक जीवित रहा तो मैं उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव लड़ूंगा.

तो भइया हसनु राम 92 बार चुनाव क्यों लड़े? इसपर जो जवाब दिया वो और मजेदार है. हसनु राम के अनुसार उनके अंदर समाजसेवा के कीड़े हैं. हसनु राम का कहना है कि वो अपने माध्यम से सिर्फ और सिर्फ लोगों की मदद करना चाहते हैं. इतनी बातों के बाद एक सवाल ये भी होगा कि वो व्यक्ति को 1984 से चुनाव लड़ रहा है और तबसे लगातार हारे जा रहा है वो अवश्य ही कोई धन्ना सेठ होगा?

तो यहां भी पब्लिक गच्चा खा गई. अपने हसनु भाई एक मनरेगा मजदूर हैं और वो जो कुछ भी कमाते हैं उसका आधा समाज सेवा पर खर्च करते हैं. इसलिए वो हारने के बावजूद खुश रहते हैं और हार उन्हें इस बात का एहसास कराती है कि इंसान कितना भी बड़ा क्यों न हो जाए उसे हमेशा जमीन पर ही रहना चाहिए.

साथ ही उनका ये भी कहना है कि यदि वो चुनाव जीत गए तो उन लोगों से नहीं मिल पाएंगे जिनकी मदद उन्हें करनी है. खैर हसनु राम अंबेडकरी ही चुनाव नहीं लड़ रहे उनकी पत्नी सुरमा देवी भी चुनावी समर में अपनी किस्मत आजमा रही हैं. उन्होंने नगला दूल्हे खां से प्रधानी के लिए अपना दावा ठोंका है. हसनु राम की पत्नी से हमें कोई मतलब नहीं है.

हमें मतलब जिस बात से है वो है वो जज्बा जो एक मनरेगा मजदूर होने के बावजूद हसनु राम को मोटिवेट करता है एक बेहतर और सभ्य समाज के निर्माण के लिए. हसनु राम अपना 93 वां चुनाव हारते हैं या फिर इस बार इतिहास रचा जाएगा इसका फैसला समाज करेगा लेकिन जो जज्बा एक समाजसेवी के रूप में हसनु राम का है वो नमन और वंदन के काबिल है.

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