Friday, March 29
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शिक्षक पूछेंगे बच्चों से – की हाल चाल छै..तू बढ़िया से क ख ग लिख..

अब आरा के छोटे बच्चे भोजपुरी में पढ़ाई करेंगे तो दरभंगा के छोटे बच्चे मैथिली में। वहीं बेगूसराय में अंगिका में पढ़ाई होगी। बिहार के प्राथमिक विद्यालय में स्थानीय भाषा में पढ़ाई होगी। शिक्षक उन्हें स्थानीय भाषा मे समझाएंगे। आरा के शिक्षक भोजपुरी में बोलेंगे कि काहो का हाल बा , तू क ख ग ठीक से लिखअ.. वहीं मैथिली के शिक्षक कहेंगे कि की हाल चाल छिय..तू बढ़िया से क ख ग लिख..तो मगही के शिक्षक बोलेंगे कि का हाल चाल हव..त क ख ग लिखअ… इस तरह से अब बिहार के प्राथमिक स्कूलों में पढ़ाई कराई जाएगी। इसके पीछे बिहार सरकार की मंशा है कि जो स्थानीय छोटे बच्चे हैं, उन्हें हिंदी समझने में दिक्कत होती है। ऐसे में शिक्षक उनको स्थानीय भाषा में पढ़ाएंगे, ताकि बच्चे बेहतर तरीके समझ सकें। इस तरह से हर जिले में वहां की स्थानीय भाषा में पढ़ाई कराई जाएगी।

अपनी मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा
दरअसल, बिहार विधानसभा मे शिक्षा विभाग के बजट के बाद शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी ने बताया कि बिहार सरकार ने फैसला लिया है कि बच्चों को उनकी मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा दी जाएगी। प्रारम्भिक विद्यालय में स्थानीय भाषा मैथिली, भोजपुरी, मगही , बज्जिका में पढ़ाई कराई जाएगी। शिक्षा मंत्री ने बताया कि फणीश्वर नाथ रेणु के जन्म शताब्दी दिवस के अवसर पर इसकी शुरुआत की जा रही है। रेणु स्थानीय भाषा में ही लिखते थे और वे स्थानीय पर जोर देते थे। महात्मा गांधी और रेणु को प्रेरणा बनाकर स्थानीय भाषा में प्रारंभिक विद्यालय में पढ़ाई कराई जाएगी। रेणु का जन्म शताब्दी वर्ष है। उनका जन्म 4 मार्च 1921 में हुआ था।

बिहार में उर्दू कहां से कहां पहुंच गई
बजट सत्र के दौरान CPI माले के विधायक महबूब आलम ने टोका कि उर्दू में भी पढ़ाई होनी चाहिए तो शिक्षा मंत्री ने कहा कि आप सोचते हैं कि उर्दू पीछे है, जबकि उर्दू कहां से कहां पहुंच गई। उर्दू बिहार की द्वितीय राजभाषा है।

गृह जिलों में आने का शिक्षकों को मिलेगा मौका
सरकार के फैसले के बाद BJP के दरभंगा विधायक संजय सरावगी ने सरकार को धन्यवाद दिया। कहा कि उन्होंने ही प्राथमिक विद्यालयों में मैथिली की पढ़ाई शुरू कराने की मांग की थी। सरकार ने इस मांग को मान लिया है। वहीं, इस फैसले के बाद उन शिक्षकों को भी फायदा मिलेगा, जिनका ट्रांसफर दूसरे जिले में हो गया है। उनको अपने गृह जिले के ही स्कूल में पढ़ाने का मौका मिल जाएगा, क्योंकि उन्हें ही स्थानीय भाषा में ज्यादा जानकारी होगी। ऐसे में उनको प्राथमिकता दी जाएगी।

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